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Swami Vivekananda Jayanti: स्वामी विवेकानंद जी के ऐसे अनमोल संदेश, जो दुनिया को हिला सकती है

भारत देश ने एक महान साधु और योगी, स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी को मनाई जाती है। सम्पूर्ण देश में आत्मविकास और राष्ट्र निर्माण के परिणित करने विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
Swami Vivekananda का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। उनकी विचारशीलता और आध्यात्मिक ज्ञान ने आज भी हमारे समाज को प्रेरित कर रखा है। Swami Vivekananda जी ने अपने जीवन में भारतीय संस्कृति, योग, और मानवता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को पश्चिमी दुनिया में फैलाया और लोगों को एक उच्च आदर्श की दिशा में प्रेरित किया।
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। उनकी विचारशीलता और आध्यात्मिक ज्ञान ने आज भी हमारे समाज को प्रेरित कर रखा है। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन में भारतीय संस्कृति, योग, और मानवता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को पश्चिमी दुनिया में फैलाया और लोगों को एक उच्च आदर्श की दिशा में प्रेरित किया। Swami Vivekananda Jayanti के अवसर पर राष्ट्र के विकास में दिये संदेश के बताने जा रहे है। स्वामी विवेकानंद के संदेश अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयन्ती के अवसर पर राष्ट्र के विकास में दिये संदेश के बताने जा रहे है। स्वामी विवेकानंद के संदेश अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं।

Swami Vivekananda Jayanti पर युवा पीढ़ी के लिये संदेश

“उठो जागो, जबतक लक्ष्य तक न पहुँच जाओ, तबतक निश्चिन्त मत बैठो, उठो, फिर से एकबार उठो, बिना त्याग के कुछ नहीं हो सकता। यदि दूसरों की सहायता करना चाहते हो तो तुम्हें अपने ‘अहं’ का त्याग करना होगा। वैराग्यवान बनो …. । अपने इस क्षुद्र जीवन को विसर्जित करने को तैयार हो जाओ। उठो, जागो, यह क्षुद्र जीवन अगर नष्ट भी हो जाता है तो हर्ज क्या है? सभी मरेंगे – साधु, असाधु, धनी, दरिद्र – सभी मरेंगे। किसी का भी शरीर चिरकाल तक नहीं रहेगा। अतः उठो, जागो एवं सम्पूर्ण रूप से निष्कपट बनो।”

“कार्य का साधारण आरम्भ देखकर हतोत्साहित मत होओ, सामान्य गति से ही कार्य बड़ा हो जाता है। साहस का अवलम्बन करो। नेता बनने की कोशिश मत करो, सेवा करो। नेतृत्व की इस पाशविक प्रवृत्ति ने ही जीवन समुद्र में बड़े बड़े जहाज डुबो दिये हैं। इस बारे में विशेष सतर्क रहो अर्थात् मृत्यु की परवाह न कर निःस्वार्थ हो जाओ और कार्य करो।”

“आशिष्ठ, द्रढ़िष्ठ, बलिष्ठ (शिष्टवान, दृढ़, शक्तिशाली) तथा मेधावी, युवकों के द्वारा ही यह कार्य सम्पन्न होगा। इसप्रकार के हजारों नवयुवक हैं। उठो, जागो, विश्व तुम्हें पुकार रहा है। अन्यान्य जगहों में बुद्धिबल है, धनबल है, लेकिन केवल हमारी मातृभूमि में ही उत्साह की ज्वाला विद्यमान है। इस उत्साहाग्नि को प्रज्वलित करना होगा। अतएव हे … युवकगण ! हृदय में इस उत्साह की अग्नि को जलाकर जागो ।”

“नाम, यश भाड़ में जाय। काम में लग जाओ, साहसी युवकवृन्द, कार्य में लगो। जितना आलस्य है उसे दूर कर दो, दूर कर दो इहलोक और परलोक की भोग वासना। अग्नि में छलांग लगा दो। मेरे भीतर जो अग्नि जल रही है, वह तुम्हारे भीतर भी जल उठे, तुम्हारा मन मुख एक हो – करनी और कथनी में जरा भी भेद न होने पाये।”

“तुमलोग जगत के युद्धक्षेत्र में वीरों की तरह मर सको यही सदैव विवेकानन्द की प्रार्थना है।”

“जगत् में आज नितान्त आवश्यकता है चरित्र की। आज जगत उन्हें चाहता है जिनका जीवन प्रेमपूर्ण और स्वार्थशून्य हो।”

Swami Vivekananda Jayanti पर स्वामी जी का दरिद्रता पर संदेश

“ऐ भावी सुधारकों, ऐ भावी देशभक्तों ! तुमलोग हृदयवान बनो, प्रेमी बनो। क्या तुमलोग अपने प्राणों में यह अनुभव कर रहे हो कि देवताओं और ऋषियों की करोड़ों सन्तानें पशु समान हो गयी हैं ? क्या तुमलोग हृदय से यह अनुभव कर रहे हो – कोटि कोटि लोग अनाहार से मर रहे हैं, कोटि कोटि लोग शताब्दियों से आधा पेट खाकर जीवन बिता रहे हैं ? क्या तुमलोग यह सब सोचकर बेचैन हुए हो ? उस चिन्ता ने क्या तुमलोगों को पागल बना दिया है ? क्या देश की दुर्दशा की चिन्ता तुम्हारे ध्यान का एकमात्र विषय हुई है एवं उस चिन्ता में डूब कर क्या तुमलोग नाम यश, स्त्री-पुत्र, विषय सम्पत्ति, यहाँ तक कि शरीर को भी भूल गये हो ? क्या तुमलोगों कीऐसी अवस्था हुई है ? यदि हाँ, तो जानना देशभक्त होने की पहली सीढ़ी पर अभी तुमने केवल कदम ही रखा है।”

“अरे, धर्म कर्म करने के लिए पहले कूर्मावतार की पूजा चाहिए और पेट है वही कूर्म। पहले इसे ठंडा किये बिना तुम्हारे धर्म कर्म की बात कोई ग्रहण नहीं करेगा। देखता नहीं, पेट की ही चिन्ता में भारत परेशान है। …. धर्म की बात सुनाने के लिए पहले इस देश के लोगों की पेट की चिन्ता दूर करनी होगी। अन्यथा केवल लेक्चर फेक्चर से कोई विशेष फल नहीं होगा।”

“पहले देश के लोगों को अन्न उपार्जन का उपाय सिखा दो। तत्पश्चात् भागवत पढ़ कर सुनाना। कर्मठता के द्वारा ऐहिक अभाव दूर किये बिना धर्म की बातों पर कोई ध्यान नहीं देगा। इसीलिए कहता हूँ- पहले स्वयं के भीतर की अन्तर्निहित आत्मशक्ति को जागृत करो, तत्पश्चात् देश के साधारण जन के भीतर जितना संभव हो, उस शक्ति से विश्वास जागृत कर पहले अन्न उपार्जन तथा बाद में धर्म प्राप्ति की बात सिखाना।”

“जगत् में आज नितान्त आवश्यकता है चरित्र की। आज जगत उन्हें चाहता है जिनका जीवन प्रेमपूर्ण और स्वार्थशून्य हो।”

नारी उत्थान के लिये स्वामी विवेकानंद का संदेश

“हे भारत, मत भूलो कि तुम्हारी नारीजाति का आदर्श सीता, सावित्री, दमयन्ती है।”

“प्राच्य नारी का पाश्चात्य नारी के मापदंड से तुलना करना ठीक नहीं। पाश्चात्य देशों में नारी है स्त्री और प्राच्य में नारी है जननी।”

“नारी के सारे जीवन में एक ही चिन्तन उसे जागरूक रखता है कि वह माँ है, आदर्श माँ होने के लिए उसे अत्यन्त पवित्र रहना होगा।”

“तुमलोग स्त्रियों को शिक्षा देकर छोड़ दो। उसके बाद वे ही बतायेंगी कि कौन सा उपयुक्त संस्कार उनके लिए आवश्यक है।”

“स्त्रियों की पूजा करके ही सभी जातियाँ बड़ी हुई हैं। जिस देश, जिस जाति में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वह देश, वह जाति कभी भी बड़ी नहीं हो सकती। किसी भी काल में बड़ी नहीं हो सकती । इसलिए उन्हें ऊपर उठाना होगा।”

“तुमलोग स्त्रियों की उन्नति कर सकते हो ? तब तो आशा है अन्यथा पशु जन्म नहीं छूटेगा।”

“…….बिना शक्ति के जगत् का उद्धार नहीं होगा। हमारा देश सभी से अधम क्यों है, शक्तिहीन क्यों है ? – शक्ति की अवमानना के कारण।”
“भारत के दो महापाप हैं – स्त्रियों को पैरों तले रौंदना और जाति जाति करके गरीबों का शोषण करना।”

“शिक्षा पाकर स्त्रियाँ स्वयं ही अपनी समस्याओं का हल निकाल लेंगी। हमलोगों के यहाँ की बालिकाएँ सदा ही ढुलमुल ढंग से शिक्षा ग्रहण करती आयीं हैं। जरा सा कुछ हुआ तो केवल रोना जानती हैं। वीरत्व का भाव भी सीखना आवश्यक है। आज उन्हें आत्मरक्षा सीखने की आवश्यकता है। देखो तो जरा, झाँसी की रानी कैसी थी!”

“धर्म को केन्द्र में रखकर स्त्री शिक्षा का प्रचार करना होगा। धर्म से भिन्न अन्य कोई भी शिक्षा गौण होगी। धर्म शिक्षा, चरित्र गठन, ब्रह्मचर्य व्रत पालन, इन सबके लिए शिक्षा की आवश्यकता है। अन्यथा कार्य में त्रुटियाँ होंगी ही।”

“हमारे देश की स्त्रियाँ …… विद्या, बुद्धि अर्जित करें, यह मैं हृदय से चाहता हूँ लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं।”

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